पारलौकिक  शोध 
 With the grace of shiv shakti I am sharing this knowledge on the basis of my research and study.
अकसर लोगों को यह कहते सुना होगा कि उनके घर को किसी की बुरी नजर लग गई है, किसी ने उनके मित्र या पारिवारिक सदस्य पर काला जादू कर दिया है या उनके घर पर किसी प्रेत आत्मा का साया है। भले ही आजकल के युवा भूत-प्रेत, जादू-टोने जैसी बातों को अंधविश्वास मानते हों लेकिन कहीं ना कहीं आज भी पारलौकिक शक्तियों से जुड़ी घटनाएं हमें यह सोचने के लिए विवश कर देती हैं कि क्या वाकई ऊपरी शक्तियों से जुड़ी बातें सच है?

पारलौकिक शक्तियां

जानकारों के अनुसार निसंदेह हमारे आसपास पारलौकिक ताकतों का वास होता है, वह इंसानी दुनिया में विचरण तो करती हैं लेकिन ये बात बिल्कुल सत्य नहीं है कि वे जब चाहे तब किसी भी व्यक्ति को परेशान करती हैं। आम धारणा के अनुसार पारलौकिक शक्तियों का प्रभाव कुछ कारणों से वय व्यक्ति पर पड़ सकता है
धर्म चाहे कोई भी हो  प्राय: सभी धर्मो से संबंधित ग्रंथों में ऊपरी हवा, बुरी नजर या शैतानी ताकतों जैसी बातों का उल्लेख है। किसी धर्म में इन्हें भूत-प्रेत ,आत्मा नेगेटिव एनर्जी कहा गया है तो कहीं इन्हें जिन्न का नाम दिया गया है। जिन्न, आत्माएं या प्रेत क्या किसी भी व्यक्ति पर अपना डेरा डाल सकते हैं? जी नहीं, आइए जानते हैं किन परिस्थितियों में कोई व्यक्ति इनकी चपेट में किन कारणों से आता जाता है:

ज्योतिष 

ज्योतिषीय भाषा में ब्रहस्पति ग्रह पितृदोष, शनि यमदोष, चंद्र व शुक्र जल देवी दोष, राहु सर्प व प्रेत दोष, मंगल शाकिनी दोष, सूर्य देव दोष एवं बुध कुल देवता दोष का कारक होता है। इनमें से राहु, शनि व केतु ग्रह ऐसे कारक ग्रह है जो पारलौकिक घटनाओं  से जुड़े हैं। ज्योतिष के  के अनुसार जब किसी व्यक्ति के लग्न, गुरु (ज्ञान), त्रिकोण (धर्म भाव) तथा द्विस्वभाव राशियों पर पाप ग्रहों का प्रभाव होता है, तब उससे संभावना बढ़ जाती है।
जब कुंडली में भाव विशेष पर गुरु, चंद्र व मंगल का प्रभाव होता है तभी मांगलिक अवसर आते हैं। ये सभी ग्रह शनि और राहु के शत्रु माने गए हैं, अत: ऐसे हालातों में भी इस तरह  की घटनाएं घाटित हो सकती हैं। 

 प्रभाव

मनुष्य के संपूर्ण शरीर में दाईं आंख पर सूर्य का नियंत्रण होता है और बाईं आंख पर चंद्रमा का, इसलिए  व्यक्ति पर जब नेगेटिव एनर्जी या  ऊपरी हवा का साया पड़ता है तो सबसे पहले उसका प्रभाव आंखों पर ही देखा जाता है, इसके अलावा अक्सर परिवारों  में बिना कारन लड़ाई झगड़े , बिमारी,  मानसिक संतुलन का बिगड़ना  व कई अन्य रहस्यमय  घटनाएं देखने को मिलती हैं  

राहु और शनि संयोग 

शनिवत राहु ऊपरी हवाओं का कारक माना गया है, जिसका अर्थ है कि यह प्रेत आत्माओं का सबसे बड़ा कारक है। जब भी कभी कुंडली के अनुसार शनिवत राहु का प्रभाव मन, शरीर, ज्ञान, धर्म, आत्मा आदि के भावों पर होता है, तो ऊपरी हवाएं सक्रिय होने लगती हैं। इसके अलावा शनि ग्रह भी राहु के समान ही प्रेत बाधा का कारक है, जब भी उपरोक्त भावों के साथ संबंध स्थापित करता है, भूत-प्रेत से जुड़ी पीड़ा देता है।
चंद्रमा का प्रभाव 
चंद्र अर्थात मन, मन पर जब पाप ग्रह जैसे राहु, केतु या शनि का नकारात्मक प्रभाव पड़ता है और कुंडली के अशुभ भाव में स्थित चंद्र कमजोर पड़ जाता है तब व्यक्ति को बुरी शक्तियों से जुड़ी पीड़ा का सामना करना पड़ता है।
शनि ग्रह भी राहु के समान ही प्रेत बाधा का कारक है, जब भी उपरोक्त भावों के साथ संबंध स्थापित करता है, भूत-प्रेत से जुड़ी पीड़ा देता है।

गुरु

गुरु अर्थात ब्रहस्पति एक सात्विक ग्रह है जो शनि, राहु या केतु से संबंध होने पर दुर्बलता ग्रहण कर लेता है। जब किसी व्यक्ति की कुंडली में ब्रहस्पति कमजोर होने लगता है तब संबंधित व्यक्ति पर ऊपरी हवाएं असर डालने लगती हैं। 

लग्न

लग्न अर्थात जातक का देह। लग्न व्यक्ति के शरीर का प्रतिनिधित्व करता है, ऊपरी हवाओं के कारक ग्रह जैसे राहु, शनि या केतु से जब लग्न का संबंध बैठता है या लग्न पर मंगल का पाप प्रभाव प्रबल हो जाता है तब व्यक्ति के ऊपरी हवाओं से ग्रस्त होने की संभावना बनती है।

 पंचम भाव

व्यक्ति की कुंडली के पंचम भाव से पूर्व जन्म में संचित कर्मों का विचार किया जाता है। जब इस भाव पर ऊपरी हवाओं के कारक राहु, शनि जैसे पाप ग्रहों हो तो यह इस बात का संकेत है कि व्यक्ति के पूर्व जन्मों में अच्छे कर्मों की कमी है। अगर कुंडली के हिसाब संचित कर्मों में बुरे कर्मों की संख्या अधिक हो तो बुरी शक्तियों का प्रभाव व्यक्ति पर पड़ता है।जब कुंडली में भाव विशेष पर गुरुचंद्र व मंगल का प्रभाव होता है तभी मांगलिक अवसर आते हैं। ये सभी ग्रह शनि और राहु के शत्रु माने गए हैंअत: ऐसे हालातों में भी इस तरह  की घटनाएं घाटित हो सकती हैं। 

 लग्न पर मंगल का पाप प्रभाव प्रबल हो जाता है तब व्यक्ति के ऊपरी हवाओं से ग्रस्त होने की संभावना बनती है।

किसी स्त्री की कुंडली के सप्तम भाव में शनि, मंगल और राहु या केतु की युति हो तब उसे बुरी शक्तियां अपनी चपेट में ले सकती हैं।

यदि जातक की कुंडली के पंचम भाव में सूर्य और शनि की युति हो, सप्तम में क्षीण चंद्र हो तथा द्वादश में गुरु हो तो ऐसी स्थिति में भी व्यक्ति प्रेत बाधा का शिकार हो सकता है। इसके अलावा अगर लग्न पर क्रूर ग्रहों की प्रबल दृष्टि को, जिसकी वजह से लग्न निर्बल बन पड़ा है, लग्नेश पाप स्थान में हो और साथ ही राहु या फिर केतु से युत हो तो व्यक्ति पर जादू-टोने का असर होता है।

जातक की कुंडली के लग्न में राहु के साथ चंद्र एक साथ हो तथा त्रिकोण में मंगल, शनि अथवा कोई अन्य क्रूर ग्रह बैठा हो तो ऐसी परिस्थितियों में जातक भूत-प्रेत आदि से पीड़ित होता है।

बाधा

व्यक्ति की कुंडली का षष्ठेश, ल्ग्न में जाकर बैठ जाए, जिससे कि लग्न निर्बल हो जाए और उसपर मंगल अपनी पूर्ण दृष्टि रखकर बैठा हो तो जातक  काफी प्रभावी रूप से इन नेगेटिव एनर्जीस की चपेट में आ जाता है। यदि जातक के लग्न में राहु, पंचम में शनि तथा अष्टम में गुरु हो तो ऐसे व्यक्ति प्रेत बाधा से काफी प्रभावी रूप से पीड़ित  देखे जाते हैं इस  योग वाले यक्तियों को विशेष ध्यान देने की जरूरत होती हे ा ज्योतिषीय व दैवीय शक्तियों के विशेष कवच  उपचार लेने चाहिए/  

उपाय

राहु और केतु ज्योतिष शास्त्र द्वारा बताए गए दो ऐसे पापी ग्रह हैं, जो यदि कुंडली में अशुभ स्थिति में बैठ जाएं तो जीवन बर्बाद कर देते हैं। सभी कार्य रुकने लगते हैं, उग्र बातों में ध्यान जाता है, मानसिक संतोष बिगड़ने लगता है।
अगर आपके ज्योतिषी ने आपको यह बताया है कि कुंडली में राहु और केतु की स्थिति खराब है, वे गलत स्थान पर बैठे हैं और जीवन पर बुरा प्रभाव डालेंगे, तो हम आपको 3 ऐसे सरल उपाय बताने जा रहे हैं जो राहु-केतु के दुष्प्रभाव को काफी कम कर सकते हैं।
 राहु-केतु को शांत करने के इन तीन उपायों को करने हैं तो इससे पहले शराब से परहेज करना चाहिए । इसके बाद ही इन उपायों की ओर बढ़ें, अन्यथा राहु-केतु को शांत करना मुश्किल हो जाएगा।

1.घर में ज्योतिषीय रेमेडी के द्वारा राहु -केतु का प्रभाव कम करने का उपाय करें 

2.प्रतिदिन काले या काले-सफेद रंग के कुत्ते को रोटी खिलाएं। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार कुत्ते को रोटी खिलाने से राहु-केतु प्रसन्न होते हैं और जातक को कष्ट देना कम कर देते हैं।

3.इस उपाय के अनुसार जातक को अपने दोनों कान छिदवाने हैं और कम से कम 43 दिनों तक उसमें तार डालकर रखनी है। यह भी राहु-केतु को प्रसन्न करताहै 

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